कुछ भी न सूझ रहा
आजकल तो दिल भी
न कुछ पूछ रहा।
वक़्त ने ऐसा सबक सिखाया
ज़ुबाँ होते भी कुछ न कह पाया।
ऐ खुदा,
यह कैसा तेरा इम्तहाँ है
इस मासूम दिल में
बस एक ही तो जान है।
इबादत करुँ तो क्या
बाकी न कोई अरमान है
इश्क़ ही मेरा मज़हब
इश्क़ ही गीता, कुरान है।
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