ज़ज़्बातो का ज़ख्म

हम तो मिटटी के बने थे
हर दिन गिरते ,
बेवजह टूटते थे ।
दुनिया के सितम रोज़ ज़ज़्बात लुटते थे ।

आज इस मोड पर खड़े हैं
ज़ज़्बात है, पर मरे हैं ।
बोलता था जो दिल
आज बेजुबान है ।
कौन कमबख्त कहता
भला बदलना आसान है ।

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