यह कैसा इलज़ाम है
या वक़्त का पैगाम है ।
बैठे थें सपने संजोए
जिस वक़्त की चाह में
गुज़र गया वह वक़्त
सिर्फ वक़्त की राह में ।
फासला देखो वक़्त का
वक़्त से ही हो गया
वक़्त का सपना
वक़्त में कही खो गया।
यह कैसा इलज़ाम है
या वक़्त का पैगाम है ।
बैठे थें सपने संजोए
जिस वक़्त की चाह में
गुज़र गया वह वक़्त
सिर्फ वक़्त की राह में ।
फासला देखो वक़्त का
वक़्त से ही हो गया
वक़्त का सपना
वक़्त में कही खो गया।
Nice poem very nice try to publish more thank u
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Thank you so much Ramalaxmi! Such encouraging comments keep my poetic spirit alive!
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