कितनी बार कहा

कितनी बार कहा सच्चाई से
कभी तो किनारा दे अपनी परछाई से ।
ज़ख्म दिए तूने तो मरहम भी होगा
वास्ता कहाँ अपना अब दर्दे- दुहाई से।

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